2 months ago
Less than 1 min read

दरकार!!

दरकार 

क्यों अनजान राही  फिर मिलते नहीं ,

न जाने उनके रास्ते कौन सी राह चुन लेते हैं ।

कुछ अनजाने से अनजाने में दिल को छू जाते हैं ,

न जाने क्यों फिर मिलने की आस छोड़ जाते हैं ।

अब दरकार सिर्फ तेरी एक झलक की है ,

न जाने क्यों फिर मिलने की लकीरें बन जाती है ।

यह लकीरें ही फिर एक नई राह बनाती हैं,

जो अलग-अलग राहों को,

 अलग-अलग राहगीरों को आपस में मिलती है ।

रास्ते तो अब एक हो गए हैं ,

साथ रहा तो मंजिलों तक भी चले जाएंगे।

 न जाने क्यों यह साथ दिल की धड़कनों सा चलने लगा है 

 जो ना थमने की दरकार कर रहा है।।

सुप्रिया सोनी।।