Dear Consideration,

Jan 30, 2022

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  • कुछ अनकही ख्वाहिशें, कभी दशकत देती हैं , मन में कहीं घोर तमस सा है। फिर भी आस द्योत का है , जिंदगी तम के गर्त में है फिर भी अवलोकन दीप्त का है , मन में विभीषिका है कहीं तमस ना रहे , फिर भी अवलंब है आमोद का । अभिख्या है यही जीवन का।

  • It was the time when sky was limitation, we were encouraged to see strangers; as a friend or loneliness imitation . It was the time when paper planes fly , our childhood memory was beyond every try. An innocence wrapped in a curious gazed undoubting, unrelenting unfazed. A dream , a freedom an imagination, a delight. A beautiful summer in moonlight . It was the merely phase of life , when we ever happily cry.

    नारी , एक अक्षत। संस्कार और समाज को सोचते सोचते अपने सपनों को खुद से कुचलते देखा , मैंने एक नारी को सशक्त संस्कार उसकी पहचान खोते देखा। खुद की पहचान और गरिमा को किनारे रखकर उसने सब के बारे में सोचा, उसके बाद भी उसको उसकी नजरों को प्यार के लिए तरसते देखा,। शस्त्रीकरण की आकांक्षा को मैंने सशक्तीकरण के सबब में सरोकार करते देखा, हां मैंने उस नारी को अपनी महत्वाकांक्षाओं का कत्ल करते देखा। अपने अरमान का सूर्यास्त कर उसको दूसरों की अभिलाषा का आत्मसात करते देखा , और हां इस समाज में मैंने इस नारी की उपेक्षा होते देखा । जिसके लिए उसने अपने अस्तित्व का त्याग किया, अपनी पहचान, अपनी आकांक्षाओं का हनन किया आज उन्हीं के हाथों उसके विद्यामनता का हनन करते देखा।

  • कब से ढूंढ रही हूं वो सुकून कहा है , क्यूं भटक रही हूं ये दुनिया में मेरा गंतव्य कहां है ? जो मिल नहीं रहा मुझे वह दिन जिस के इंतजार में कई रातों गुजर रही है ? क्यों खुशी नहीं मिल रही है , क्यों मन उदास है ? उजाला नहीं दिख रहा जिंदगी में ,फिर भी ना जाने क्यों उस खुशी की आस है ? ऐ जिंदगी अब दे वह सुकून मेरी जिंदगी की, ना लें अब और परीक्षा मेरे हंसी की । थक सा गया है यह मन अब।

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