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आदत
आदत की आदत न कहो कैसी है
उस चंदा को एकटक निहारती चली जा रही है।
गुजरते वक्त के साथ उसे अपना बना रही है।
कलम की स्याही सी ये आदत बस लिखती चली जा रही है।
उन बादलों के दरमियां पानी सी ,
बरसती हुई मुझे भिगोती चली जा रही है।
आदत की आदत न कहो कैसी है
उस चंदा को एकटक निहारती चली जा रही है।
इन आंखों की गहराइयों में निहारते-निहारते ,
उस चंदा की रोशनी बढ़ती चली जा रही है।
कानों की गहराइयों में सुकून सी,
ये पायल की तरह बजती चली जा रही है।
आंगन में खिले फूल की तरह पूरे घर में
खुशबू फैलाती चली जा रही है।
इन सर्द हवाओं में अपनेपन का अहसास लिए ,
उस सिगड़ी की लो बढ़ती चली जा रही है।
आदत की आदत न कहो कैसी है
उस चंदा को एकटक निहारती चली जा रही है।
सुप्रिया सोनी।
Appreciate the creator